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बागलकोट (Bagalkote)

ByHinduEcho Karnataka

बागलकोट (Bagalkot) भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित एक नगर है। बागलकोट जिले का मुख्यालय भी है। यह जिला रेशम और हस्तशिल्प उद्योग के लिए जाना जाता है। बागलकोट पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसके कई मंदिर यूनेस्को के विश्‍व धरोहर सूची में शामिल है-

बगलकोट का इतिहास (History of Bagalkote, Karnatka)

बगलकोट चालुक्य वंश की मातृभूमि थी। चालुक्य कला और वास्तुशिल्प को दर्शाता बगलकोट कर्नाटक का प्रमुख पर्यटक स्थल है। बादामी, ऐहोल और पट्टाडक्कल पर्यटकों को खास तौर से आकर्षित करते हैं। पट्टाडक्कल में कई ऐसे मंदिर हैं जिनका निर्माण विक्रमादित्य द्वितीय ने करवाया था और वे यूनेस्को के विश्‍व धरोहर सूची में शामिल हैं।

मालप्रभा नदी के किनारे स्थित ऐहोल को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यहां करीब 140 मंदिर हैं जो चालुक्य काल से पहले और बाद में बनाए गए थे। बादामी के गुफा मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध हैं। इतिहास और ऐतिहासिक इमारतों में रुचि रखने वालों के लिए बगलकोट बिल्कुल सही स्थान है।

1. गुफा मंदिर, बादामी

बदामी में चार प्रसिद्ध गुफाएं हैं जो पहाड़ी पर स्थित हैं। यहां पहुंचने के लिए सीढ़ियों की एक लंबी कतार को पार करना होता है। चारों गुफाओं में से तीन का संबंध शिव और विष्णु से है जबकि आखिरी गुफा में अनेक जैन देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा पार्श्‍वनाथ की एक भव्य प्रतिमा है। चालुक्य विष्णु के उपासक थे। उन्होंने 600 सालों तक राज किया। लेकिन पल्लवों के हाथों उन्हें पराजय के बाद कुछ समय तक उन्हें शासन से बाहर भी रहना पड़ा। राज सत्ता पुन: प्राप्त करने पर उनका आध्यात्म में रूझान बढ़ा। इससे बाद से उन्होंने शिव और जैन उपासकों को भी मंदिर बनाने के लिए आमंत्रित किया।

पहली गुफा: सबसे पहली गुफा में शिव-पार्वती के संयुक्त रूप अर्धनारीश्वर के दर्शन होते हैं। इस प्रतिमा का दायां भाग शिव को और बायां भाग पार्वती को दर्शाता है। एक अन्य मूर्ति में शिव और विष्णु का संयुक्त रूप समाहित है। यहां 18 भुजाओं वाले नटराज भी विराजमान हैं। कुल मिलाकर यह गुफा शिवजी को समर्पित है।

दूसरी गुफा: दूसरी गुफा विष्णु को समर्पित है जिसमें वराह और त्रीविक्रम अवतारों का दिखाया गया है। वराह चालुक्यों को प्रतीक चिन्‍ह था। शायद यही कारण है कि यहां के मूर्ति शिल्प में यह सबसे अद्भुत है। दूसरी गुफा से बाहर निकलकर जब आप तीसरी गुफा की ओर बढ़ते हैं तो टीपू के किले की ओर जाने के लिए सीढ़ियां दिखाई देती हैं।

तीसरी गुफा: तीसरी गुफा भी विष्णु को समर्पित है। विष्णु के अलावा यहां शिव, ब्रह्मा और इंद्र की भी प्रतिमाएं हैं। जनक, पालक और संहारक के एक साथ विराजमान होने से यह मंदिर मूर्ति कला का अद्वितीय नजारा पेश करता है।

चौथी गुफ़ा: चौथी और आखिरी गुफा जैन धर्म से संबद्ध है। इसलिए इसमें र्तीथकर आदिनाथ सहित अन्य र्तीथकरों के मूर्तियां स्थापित हैं। ये गुफाएं एक झुंड में बनाई गई हैं। यहां पहुंचना भी बहुत सुविधाजनक है। ये बस स्टैंड से केवल दो किमी. की दूरी पर हैं। रास्ते में यहां पहुंचने के लिए अनेक चिह्न बनाए गए हैं जिनकी सहायता से पर्यटक यहां आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।

समय: प्रात: 6 बजे से सांय 6 बजे तक

2. टीपू का किला, बदामी

18वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान ने बदामी का भ्रमण किया था। यहां की खूबसूरती से वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने बदामी की पहाड़ियों पर किले का निर्माण कराया। गाइड के अनुसार यहां रखी हुई विशाल तोपें दुश्मनों का सामना करने के लिए लगाई गईं थी। इन तोपों की सुंदरता देखते ही बनती है।

यह किला उस पहाड़ी पर निर्मित है जिसे काटकर मंदिरों का निर्माण किया गया था। यहां से गुजरते हुए एक प्राकृतिक गुफा भी दिखती है जहां बौद्ध तीर्थयात्री रहते हैं। पहाड़ी से बदामी का मनोहारी नजारा दिखाई पड़ता है जो इस यात्रा को सार्थक बनाता है।

3. भूतनाथ मंदिर, बदामी

झील के किनार स्थित भूतनाथ मंदिर शिवजी का पुरातन मंदिर है। मंदिर में भगवान शिव भूतनाथ रूप में विराजमान हैं। मंदिर परिसर में से एक मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में किया गया था। बाकि का हिस्सा 11वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया। मंदिर में स्थापित भगवान शिव की प्रतिमा दुर्लभ मुद्रा में उकेरी गई है जो उनके आकर्षण को बढ़ाती है। मंदिर के पीछे स्थित चट्टानों और पत्थरों पर विष्णु के अवतारों और जैन आकृतियों को देखा जा सकता है।

4. गोलगनाथ मंदिर, पट्टाडक्कल

गोलगनाथ मंदिर पट्टाडक्कल का मुख्य आकर्षण है जो चालुक्य साम्राज्य के उत्कर्ष को दिखाता है। मालप्रभा नदी के किनार स्थित इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था। भगवान शिव को समर्पित गोलगनाथ मंदिर परिसर में करीब 30 छोटे मंदिर हैं। यह मंदिर उत्तर भारत की नागर वास्तुशैली में निर्मित है।

इस मंदिर को देख कर लगता है कि मानो चालुक्य वंश ने इसके निर्माण में उत्तर और दक्षिण भारत की शैलियों को संगम करने की कोशिश थी। भगवान शिव के अलावा यहां देवी गंगा और देवी यमुना की प्रतिमाएं भी हैं जो प्रवेश द्वार पर स्थित हैं।

5. मल्लिकार्जुन मंदिर, पट्टाडक्कल

इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य द्वितीय की रानी त्रयलोक्यमहादेवी ने विक्रमादित्य की कांची पर विजय की याद में करवाया था। मंदिर का मूल नाम त्रयलोकेश्‍वर मंदिर था। आकार में यह पट्टाडक्कल के ही एक अन्य मंदिर विरुपक्ष के सामान है। मल्लिकार्जुन मंदिर चालुक्य वास्तुशिल्प का सुंदर उदाहरण पेश करता है।

मंदिर के स्तंभ भगवान कृष्ण के जन्म और जीवनकाल को दर्शाते हैं। मंदिर में महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा भी देखी जा सकती है। मार्च-अप्रैल के महीने में यहां वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाता है जो बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।

6. दफ्तर की मस्जिद, ऐहोल

इस मस्जिद का निर्माण 1510 में किया गया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण प्राचीन हिंदू मंदिर के पत्थरों से किया गया है। मंदिर की समतल छत और स्तंभ चालुक्य मंदिर शैली की याद दिलाते हैं। बहमन शैली के गुंबद वाली इस मस्जिद को एक मीनार की मस्जिद भी कहा जाता है।

7. मेगुती मंदिर, ऐहोल

छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित मेगुती मंदिर का निर्माण 634 ईसवी में किया गया था। इसे देख कर ऐसा लगता है जैसे यह मंदिर कभी पूरा नहीं हो पाया। यह मंदिर वास्तुशिल्प की द्रविड़ियन शैली के आरंभिक विकास को दर्शाता है।

मंदिर के निर्माण के बार में जानकारी देने वाले शिलालेख मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिलते हैं। इनके अनुसार इसका निर्माण पुलकेसिन द्वितीय के सेनापति और मंत्री रविकीर्ति ने करवाया था। यह भी अनुमान लगाया जाता है कि शायद यह एक जैन मंदिर रहा होगा। मंदिर के कुछ हिस्सों का निर्माण बाद में किया गया था।

8. हरीदा तीर्थ

बनशंकरी मंदिर के पास स्थित हरीदा तीर्थ बदामी से 5 किमी. दूर है। यह एक पवित्र कुंड है जिसे पहले हरीश्चंद्र तीर्थ के नाम से जाना जाता था। यह तीर्थ पत्थर के विशाल मंडप से ढका हुआ है और यहां बहुत से स्तंभों की पंक्तियां भी हैं।

बागलकोट कैंसे पहूंचे (How to Reach Bagalkote)


वायु मार्ग
: नजदीकी हवाई अड्डा बेलगाम है।

रेल मार्ग: बगलकोट रेलों के जरिए दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग: शोलापुर बगलकोट से केवल 5 घंटे की दूरी पर है। दोनों शहरों के बीच केएसआरटीसी और एमएसआरटीसी की बसें नियमित रूप से चलती हैं। मुंबई और हैदराबाद से शोलापुर के रास्ते बगलकोट पहुंचा जा सकता है।

Post Tags: #Bagalkote#Karnataka#Karnataka Tourism

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