Kakabhushundi: जानिए, काकभुशुंडी का रहस्य
Kakabhushundi: काकभुशुंडी एक ब्राह्मण थे जो लोमश ऋषि के शाप से कौआ हो गए थे। वे राम के बड़े भक्त थे। इन्होंने भुशुंडी रामायण की रचना की थी। आइए जानते हैं काकभुशुंडी का रहस्य..
काकभुशुंडी का प्रथम जन्म अयोध्या में एक शूद्र परिवार में हुआ। उस जन्म में वे भगवान् शिव के भक्त थे, किंतु अभिमानपूर्वक अन्य देवताओं की निंदा करते थे। एक बार अयोध्या में अकाल पड़ जाने पर वे उज्जैन चले गए। वहाँ वे एक दयालु ब्राह्मण की सेवा करते हुए उन्हीं के साथ रहने लगे। वे ब्राह्मण भगवान् शंकर के बहुत बड़े भक्त थे किंतु भगवान् विष्णु की निंदा कभी नहीं करते थे।
उन्होंने उस शूद्र को शिवजी का मंत्र दिया। मंत्र पाकर उसका अभिमान और भी बढ़ गया। वे अन्य द्विजों से ईर्ष्या और भगवान् विष्णु से द्रोह करने लगे। उनके इस व्यवहार वे ब्राह्मण अत्यंत दुःखी होकर उन्हें श्रीराम की भक्ति का उपदेश दिया करते थे।
एक बार उस शूद्र ने भगवान् शंकर के मंदिर में अपने गुरु, अर्थात् जिस ब्राह्मण के साथ वे रहते थे, उनका अपमान कर दिया। इस पर भगवान् शंकर ने आकाशवाणी करके उन्हें शाप दे दिया कि रे पापी! तूने गुरु का निरादर किया है इसलिये तू सर्प की अधम योनि में चला जा और सर्प योनि के बाद तुझे 1000 बार अनेक योनियों में जन्म लेना पडेंगे।
गुरु बड़े दयालु थे इसलिये उन्होंने शिवजी की स्तुति करके अपने शिष्य के लिए क्षमा प्रार्थना की। गुरु द्वारा क्षमा याचना करने पर भगवान् शंकर ने आकाशवाणी करके कहा, “हे ब्राह्मण! मेरा शाप व्यर्थ नहीं जायेगा। इस शूद्र को 1000 बार जन्म अवश्य ही लेना पड़ेगा किंतु जन्मने और मरने में जो दुःसह्य दुःख होता है वह इसे नहीं होगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा। इसे अपने प्रत्येक जन्म का स्मरण बना रहेगा। मेरी कृपा से इसे भगवान् श्रीराम के चरणों के प्रति भक्ति भी प्राप्त होगी।”
इसके पश्चात उस शूद्र ने विंध्याचल में जाकर सर्प योनि प्राप्त की। कुछ काल बीतने पर उसने उस शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया। वह जो भी शरीर धारण करता था, उसे बिना कष्ट के सुखपूर्वक त्याग देता था, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग कर नया वस्त्र पहन लेता है। प्रत्येक जन्म की याद उसे बनी रहती थी। श्री रामचन्द्र जी के प्रति भक्ति भी उसमें उत्पन्न हो गई।
अंतिम शरीर उसने ब्राह्मण का पाया। ब्राह्मण हो जाने पर ज्ञानप्राप्ति के लिये वह लोमश ऋषि के पास गया। जब लोमश ऋषि उसे ज्ञान देते थे तो वह उनसे अनेक प्रकार के तर्क-कुतर्क करता था। उसके इस व्यवहार से कुपित होकर लोमश ऋषि ने उसे शाप दे दिया कि जा तू चांडाल पक्षी (कौआ) हो जा। वह तत्काल कौआ बनकर उड़ गया।
शाप देने के पश्चात् लोमश ऋषि को पश्चात्ताप हुआ और उन्होंने उस कौए को वापस बुलाकर राममंत्र दिया तथा इच्छा मृत्यु का वरदान भी दिया। कौए का शरीर पाने के बाद ही राममंत्र मिलने के कारण उस शरीर से उन्हें प्रेम हो गया और वे कौए के रूप में ही रहने लगे तथा काकभुशुंडी के नाम से विख्यात हुए।
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