शिव मानस स्तोत्र: संपूर्ण श्लोक एवं हिंदी अर्थ (MP3 सहित)
Shiva Manasa: शिव मानस पूजा स्त्रोत क्या है? कैसे करें?” शिव मानस स्तोत्र” एक अत्यंत पवित्र और भावपूर्ण स्तुति है जो आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी) द्वारा रचित मानी जाती है।
यह स्तोत्र भगवान शिव की मानसिक पूजा को दर्शाता है — जिसमें श्रद्धा, भावना और आत्म-समर्पण से शिव की आराधना की जाती है, भौतिक सामग्रियों की आवश्यकता नहीं होती। (और पढ़ें: शिव पूजन में ध्यान रखने योग्य बाते
शिव मानस पूजा स्तोत्र || Shiva Manasa Puja Stotram

“शिव मानस स्तोत्र” का शुद्ध संस्कृत श्लोक और उसका सही, भावानुकूल हिंदी अनुवाद नीचे चरणबद्ध दिया गया है — ताकि आप न केवल शाब्दिक अर्थ समझें, बल्कि उसके पीछे छिपी आध्यात्मिक भावना को भी अनुभव कर सकें।
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥
हे प्रभु! मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं, कि मै आपको संपूर्ण रत्नों से निर्मित सिंहासन पर विराजमान कर, हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करा रहा हूं। स्नान के बाद रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर कस्तूरी में बनाया गया चंदन आपके अंगों पर लगा रहा हूं।
जूही, चंपा, बेलपत्र आदि की पुष्पांजलि, सुगंधित धूप और दीपक आपको संकल्प रुल में अर्पित कर रहा हूं, हे पशुपति, कृपया इसे स्वीकार करें।
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं,
पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं ताम्बूलं,
मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥
अर्थ: हे प्रभु! मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, उसमे खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के साथ कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल और ताम्बूल आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। हे कल्याण नाथ! आप मेरी इस भावना को स्वीकार करें।
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलम्,
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया,
सङ्कल्पेन समर्पितं तवविभो पूजां गृहाण प्रभो॥
हे प्रभु! मैं आपको मानसिक रूप से छत्र, चंवर, दर्पण, वीणा, मृदंग, नृत्य, गीत, और विभिन्न स्तुतियों को अर्पित कर रहा हूं।
मैं आपको साष्टांग प्रणाम, अनेक प्रकार की स्तुतियाँ (प्रशंसा के गीत, मंत्र, भजन) अपने संकल्प (भावना) से आपके समर्पित कर रहा हूं। कृपया मेरी पूजा स्वीकार करें।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो,
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥४॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
हे शम्भो! मेरे पैरों का चलना ही आपकी परिक्रमा है,मेरे मुख से निकलने वाले सभी शब्द ही आपकी स्तुतियाँ हैं,और मैं जो भी कर्म करता हूँ, वह सब कुछ आपकी ही आराधना है।
हे प्रभु शंकर! आप ही मेरी आत्मा हैं, गिरिजा (पार्वती) मेरी बुद्धि है, यह प्राण आपका सेवक और मेरा शरीर आपका मंदिर है। विषय-सुख आपकी पूजन सामग्री, निद्रा समाधी, चलना प्रदक्षिणा और मेरी वाणी स्तोत्र है। मैं जो भी कर्म करता हूँ, वह सब आपकी ही आराधना है।
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा,
श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो॥
करुणा के सागर, हे महादेव शम्भो! मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी उचित या अनुचित, धर्मानुकूल या धर्मविरुद्ध किया है — वह सब आप क्षमा करें। आपकी जय हो, आपकी बारम्बार वंदना है।
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा संपूर्ण ॥
5 कारण क्यों शिव मानस पूजा सर्वोत्तम है?
1. मानस पूजा में कोई सामग्री नहीं चाहिए– इसमें फूल, धूप, दीप आदि की आवश्यकता नहीं होती। केवल मन, श्रद्धा और ध्यान से शिव को प्रसन्न किया जा सकता है।→ “भावसे भक्ति सर्वोत्तम।”
2. यह योग और ध्यान का सर्वोत्तम रूप है– मानस पूजा ध्यान के माध्यम से की जाती है, जिससे साधक की चित्तवृत्तियाँ शांत होती हैं और शिव से एकात्म अनुभव होता है।
2. यह योग और ध्यान का सर्वोत्तम रूप है– मानस पूजा ध्यान के माध्यम से की जाती है, जिससे साधक की चित्तवृत्तियाँ शांत होती हैं और शिव से एकात्म अनुभव होता है।
3. सभी प्रकार के दोष क्षमा हो जाते हैं– स्तोत्र के अंत में शिव से विनम्र क्षमा माँगी जाती है, जिससे जाने-अनजाने के पाप भी नष्ट हो जाते हैं: “विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।”
5. शिव की आत्मा से एकता का अनुभव– “आत्मा त्वं, गिरिजा मतिः…” – साधक शिव को ही आत्मा, इंद्रियों और जीवन का स्रोत मानकर पूर्ण समर्पण करता है। यह भक्ति का चरम स्तर है।
5. कहीं भी कभी भी की जा सकती है– समय, स्थान और शुद्धता की बाध्यता नहीं। यात्रा में, निद्रा से पूर्व, जप करते हुए – कभी भी मानस पूजा संभव है।
निष्कर्ष: यह स्तोत्र कहता है —”यदि कोई वस्तु नहीं है, साधन नहीं हैं, तब भी मात्र भावना, मन, श्रद्धा और समर्पण से भगवान शिव को पूजा जा सकता है।