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सोमवती अमावस्या व्रत कथा और पूजन विधि

ByHinduEcho Vrat Tyohar

जव अमावस्या सोमवार को पड़ती है तब यह तिथि मनाई जाती है। ये वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है।

सुहागन स्त्रियों को इस दिन पति की दीर्घायु के लिए पीपल के वृक्ष की पूूजन करना चाहिए। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष।

Somvati Amavasya

सोमवती अमावस्या महत्व (Importance of somvati Amavasya in Hindi)

सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व है। ज्योतिष अनुसार- सोमवार चंद्रमा का दिन होता है और इस दिन अमावस्या पड़ने पर सूर्य और चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं। इस खास संयोग को हिन्दू धर्म ग्रंथो में बेहद शुभ माना जाता है।

ऐसी मान्‍यता है कि सोमवती अमावस्‍या के दिन गंगा सहित किसी भी पवित्र नदी में स्‍नान करने से मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त हो जाता है। यदि नदी में स्नान नही कर सकते यो घर मे ही पवित्र नदी के जल को मिलाकर स्नान करें।

अमावस्या पर पितरो की पूजा की जाती है अतः जिन लोगों की जन्म कुंडली में पितृ दोष है, वे इस दिन पितरों की पूजा करनी चाहिए। दूध में काले तिल मिलाकर तर्पण करें और किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएं।

इस दिन मौन व्रत करने का भी विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। इससे आपके घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य आता है। यदि स्त्री इस व्रत का पालन करे तो सौभाग्य औऱ संतति सुख बना रहता है।

2021 में सोमवती अमावस्या कब है? (Somvati Amavasya 2021 date and Muhurat)

इस वर्ष सोमवती अमावस्या 11 अप्रैल 2021 को सुबह 06 बजकर 05 मिनट से लेकर 12 अप्रैल 2021 सुबह 08 बजकर 02 मिनट तक रहेगा।

खास बात यह है कि इस साल सोमवती अमावस्या केवल एक ही पड़ रही है। जिसके कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है।


सोमवती अमावस्या व्रत कथा (Somvati Amavasya Vrat Katha or Story In Hindi)

महाभारत युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद मृत्यु शय्या पर पड़े हुए भीष्म के पास युधिष्ठिर ने जाकर कहा कि-हे पितामह ! इस युद्ध में कुरुवंश के भी सभी मुख्य लोग मर गए बचे हुए राजाओं को भी क्रोधी भीमसेन ने मार डाला, भरत- वंश में केवल हम ही शेष हैं।

सन्तति के विच्छेद को देख कर हमारे हृदय को बड़ा सन्ताप होता है। उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न हुआ परीक्षित भी अश्वत्थामा के अस्त्र से दग्ध हुआ। इससे अपने वंश के नाश को देख कर मुझे बहुत दुख है। हे पितामह ! मैं क्या कर, जिससे चिरञ्जीवी सन्तति प्राप्त हो।

तब भीष्म ने उत्तर दिया कि जिस दिन सोमवार को अमावस हो, उस दिन पीपल के पास जाकर जनार्दन की पूजा और पीपल की 108 परिक्रमा करे। 108 ही रत्न, सिक्के या फल को लेकर प्रदक्षिणा करे।

हे राजन् ! यही व्रत तुम उत्तरा से कराओ, तब उसका मृत गर्भ जी जायगा और तीनों लोकों में विख्यात और गुणवान् होगा। तब युधिष्ठिर ने पूछा कि कृपा करके बतलाइए कि यह व्रत मनुष्य-लोक में किसने किया ?

भीष्म जी ने उत्तर में कहा कि इस भूमि में कान्ति नाम की पुरा थी। उसमें रत्नसेन नाम का राजा राज करता था। वहाँ देवस्वामी नामक ब्राह्मण रहता था । इस ब्राह्मण की धनवती नाम की स्त्री थी। ब्राह्मण के इस पत्नी से सात पुत्र और एक कन्या पैदा हुई। लड़कों का तो विवाह हो गया था ; किन्तु लड़की का विवाह नहीं हुआ था। ब्राह्मण योग्य वर की तलाश में था।

एक दिन एक बड़ा तेजस्वी ब्राह्मण भिक्षा माँगने आया। बहुओं ने जब इस व्राह्मण को पृथक्-पृथक् भिक्षा दी, तव उस समय इस ब्राह्मण ने उन्हें सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया; किन्तु जब गुणवती कन्या ने भिक्षा दी, तो उस ब्राह्मण ने ‘धर्मवती हो’ ऐसा आशीर्वाद दिया। गुणवती ने अपनी माता से जाकर जो आशीर्वाद ब्राह्मण ने उसे और उसकी भाभी को दिया था, कह सुनुया।

माता ने उस ब्राह्मण के पास आकर इसका कारण पूछा कि गुणवती को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया ? वाहाया ने उत्तर दिया कि गुणवती को भाँवर के समय ही वैधव्य प्राप्त होगा, इसलिए मैंने ऐसा वरदान दिया है।

उसके इस वचन को सुन कर धनवती को बड़ी चिन्ता हुई और प्रणाम करके ब्राह्मण से प्रार्थना की कि इसका कोई उपाय बताइए। तब भिक्षुक ने कहा कि जब तेरे घर में सोमा आये, तो उसी समय उसके पूजन से वैधव्य का नाश होगा।

धनवती ने पूछा कि सोमा कौन जाति है और कहाँ रहती है। ब्राह्मण ने कहा कि यह जाति की धोविन है और सिंहलद्वीप की रहने वाली है। जब वह आवेगी, तब तेरी लड़की का वैधव्य योग होगा। यह कह कर ब्राह्मण भिक्षा माँगता-माँगता अन्यत्र चला गया।

माता ने अपने पुत्रों को बुला कर कहा कि तुम लोग अपनी बहिन गुणवती को साथ लेकर सिंहलद्वीप जायो और सोमा को बुला लाओ। लड़को ने दुर्गम मार्ग की चिन्ता करके जाने से इन्कार कर दिया; किन्तु पिता के कुपित होने पर शिवस्वामी नाम का सबसे छोटा लड़का अपनी बहन को लेकर रवाना हो गया। बहुत दिन सफर करने के बाद वह समुद्र के तट पर पहुँचा और वहाँ से समुद्र को पार करने की चिन्ता करने लगा।

समुद्र के तट पर ही एक वट का वृक्ष था। उस वृद्ध पर गिद्ध ने अपने बच्चे रख छोड़े थे। उसी वृक्ष के नीचे बैठ कर गुणवती और शिवस्वामी ने सारा दिन व्यतीत कर दिया। साय द्वाल को गिद्ध जय अपने बच्चों को चारा चुगाने लगा, तो बच्चों ने नहीं खाया । कारण पूछने पर बच्चों ने कहा कि जब तक वृक्ष के नीचे बैठे हुए दोनों मनुप्य भोजन नहीं करते, तब तक हम लोग भी भोजन नहीं करेंगे।

इस पर गिद्धराज ने आकर शिवस्वामी से उनका वृत्तान्त पूछा। मालूम होने पर गिद्धराज ने उन्हें दूसरे दिन प्रातःकाल सोमा धोबिन के यहाँ पहुँचा देने का वचन दिया। दूसरे दिन अपनी प्रतिक्षा के अनुसार गिद्धराज ने गुणवती और शिवस्वाभी को सिंहलद्वीप में सोमा धोबिन के यहाँ पहुँचा दिया।

यह दोनों सोमा घोविन के घर में साल भर तक बराबर दास-दासी का काम करते और घर लीपते रहे। घर की असाधारण सफाई देख कर सोमा ने एक रोज़ पूछा कि आखिर मेरे घर की नित्य प्रति सफाई कौन कर जाता है। बहुओं ने कहा हम नहीं जानतीं, हमने स्वयं तो कभी नहीं लीपा।

एक दिन छिप कर देखा, तो गुणवती और शिवस्वामी को घर की सफाई करते पाया। उसे बड़ा आश्चर्य हुश्रा। उसने इनसे पूछा – ब्राह्मण होकर तुम इस प्रकार शुद्र की सेवा क्यों करते हो ?

उन्होंने अपनी कथा सुनाई और उससे प्रार्थना की कि वह उनके साथ चले। सोमा चलने को राजी हो गई। चलते समय उसने अपने घर के स्त्री-पुरुषों को यह आदेश दिया कि मेरी अनुपस्थिति में यदि कोई मर जाय, तो उसको ज्यों का त्यों रखना।

सोमा गुणवती के घर गई। गुणवती का विवाह रुद्र शर्मा से निश्चित हो चुका था। भाँवरें हो ही रही थीं कि रुद्र शर्मा का एकदम प्राणान्त हो गया। सारे घर में रोना-पीटना होने लगा ; किन्तु सोमा को ज़रा भी चिन्ता नहीं। उसने व्रतराज का फल संकल्प करके दिया, जिसके प्रभाव से रुद्र शर्मा निद्रा से जागने के समान उठ खड़ा हुआ।

जब सोमा अपने घर वापस गई, तो यहाँ उसके पुत्र, स्वामी और दामाद सब मर चुके थे। उस दिन सोमवती अमावस्या थी, जिसे मृत सञ्जीवनी तिथि भी कहते हैं। रास्ते में उसे एक स्त्री रूई से लदी हुई मिली, जो दबी जा रही थी। उसने सोमा से बहुत प्रार्थना की कि बोझ में कुछ सहारा दे दे; किन्तु सोमा ने इन्कार कर दिया और कहा कि आज सोमवती अमावस्या है, इस दिन रुई या मूली कुछ भी नहीं छुई जाती।

सोमा ने तुरन्त ही पीपल के वृक्ष के नीचे जाकर हाथ में शक्कर लेकर वृक्ष की 108 प्रदक्षिणाएँ की और विष्णु भगवान् का पूजन किया। पूजन के प्रभाव से उसके पुत्र, दामाद और कन्या भी जी उठे।

सोमा जो अपने घर आई, तो सारा हाल सुना। बहुओं ने अपने कुटुम्बों के मरने और उनके फिर से जोने का कारण पूछा, तब उसने बताया कि मैंने गुणवती कन्या को, जिसका सुहाग खण्डित था, व्रतराज का फल प्रदान किया, इससे उसका वैधव्य तो नष्ट हो गया, पर मेरे कुटुम्ब का सुहाग जाता रहा। जब सोमवती अमावस्या की पूजन किया, तब उसके प्रभाव से पहले की तरह फिर, हो गया।


सोमवती अमावस्या पूजन विधि (Somvati Amavasya vrat pujan vidhi in hindi)

सोमवती अमावस्या का व्रत विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिये करती है। इसे अश्वत्थ (पीपल) प्रदक्षिणा व्रत भी कहते हैं। इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्म तथा स्नान आदि से निवृत होकर पीपल वृक्ष के पास जावें।

पीपल की जड़ में लक्ष्मी नारायण की स्थापना करके दूध / जल अर्पित करें। नारायण का ध्यान पुष्प, अक्षत, चन्दन, भोग, धूप इत्यादि अर्पण करें। पेड़ पर सूत बांधकर “ॐ श्री वासुदेवाय नम:” बोलते हुए 108 बार परिक्रमा करें। इसके बाद सोमवती अमावस्या कथा सुनें या सुनाये।

सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों अथवा गरीब को दान दें। ऐसा करने से भगवान पुत्र, पौत्र, धन, धान्य तथा सभी मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। इस दिन मूली और रूई का स्पर्श ना करें।

अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। इस दिन पितरों का तर्पण करना शुभ फलकारी होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है। इस दिन शुद्ध सात्विक भोजन का भोग लगाना चाहिए।

Post Tags: #Amavasya#Vrat Tyohar

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